हम हिन्दू:   एकता में विविधता

  हम हिंदू हैं। प्राचीन काल से हिन्दुस्थान में रहते आए हैं। हमारा महाविषाल समाज है। इसमें विभिन्नताएँ होंगी, किन्तु हम सब एक हैं। 

हम हिन्दू:   एकता में विविधता

  हम हिंदू हैं। प्राचीन काल से हिन्दुस्थान में रहते आए हैं। हमारा महाविषाल समाज है। इसमें विभिन्नताएँ होंगी, किन्तु हम सब एक हैं। 

एकता का आभास:  हमारा अद्वितीय देश 

  पूर्व से पष्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक यह हमारा देश  है। इस देश और समाज से हमारी श्रद्धा संबद्ध है । 

हम सब हिंदू हैं

  लोग हिंदू की व्याख्या पूछते हैं। मैं तो कहूंगा कि हम हिंदू हैं और हम जिसे कहेंगे वह हिंदू है

शंख शब्द:  हिंदूत्व की आभासा 

  जगद्गुरु श्री शंकराचार्य के समान हमें भी शंख  फूँककर कहना होगा कि जिसके कान में शंक ध्वनि पड़ी, वह हिंदू हो गया|

 हिंदूत्व का समर्पण:  एकता और परंपरा 

  आज तो हम इतना ही जानते हैं कि हम हिंदू हैं। हमारी समान श्रद्धाएँ हैं, परंपराएँ हैं, श्रेश्ठ महापुरुशों के समान जीवनआदर्ष हैं।  

  एक हजार वर्ष पूर्व:  सभी हिंदू

एक हजार वर्श पूर्व यहाँ हिंदू के अतिरिक्त किसी दूसरे का नाम तक नहीं था। अनेक पंथ, संप्रदाय, भाशाएँ, जातियाँ, राज्य रहे होंगे किंतु सब हिंदू ही थे

  हिंदू आत्मसात्कार:  पुनर्निर्माण कहानी 

शक, हूण, ग्रीक आदि आए, किन्तु उन्हें हिंदू बनना पड़ा। वे हमें भ्रश्ट करने में असफल रहे। बल्कि हमने ही उन्हें पूर्णरूपेण आत्मसात् कर लिया। 

   हिंदू समाज:  विभाजित प्रसार 

पहले जहाँ सब ओर हिंदू ही थे, वहाँ आज हमारे ही अंग-प्रत्यंग को खाकर हमारे समाज से अलग होकर अपना प्रसार करनेवाले कई कोटि अहिंदू हैं। इस दृश्टि से हिंदू समाज का ह्रास क्या हमारी आँखों के सामने है

   हिंदू समाज:  आरोप और चुनौती 

हिंदू’ के सम्बन्ध में कुछ लोग घिसे-पिटे पुराने आरोप दोहराते रहते हैं। आरोपों को सुनकर अपने समाज के लोग घबराते भी हैं। :इस राष्ट्रजीवन को  किसी अन्य पर्यायी षब्द से बोलने के लिये लोग सलाह भी देते हैं। परंतु क्या पर्याय लेने से मूल अर्थ बदलेगा?

   हिंदू:  सीधा और सादा   

भारत’ को कितना ही तोड़-मरोड़कर कहा जाए तो भी उसमें अन्य कोई अर्थ नहीं निकल सकता। अर्थ केवल एक ही निकलेगा ‘हिंदू’। तब क्यों न ‘हिंदू’ शब्द  का ही असंदिग्ध प्रयोग करें। सीधा-सादा प्रचलित शब्द ‘हिंदू’ है। 

     हिंदू:  इतिहास का संकटपूर्ण  साथी   

हिंदू शब्द  हमारे साथ विषेश रूप से हमारे इतिहास के गत एक सहस्र वर्शों के संकटपूर्णकाल से जुड़ा रहा है।

    हिंदूराष्ट्र:  हमारा दायित्व  हमारा सम्मान     

यह हिंदूराष्ट्र है, इस राष्ट्र का दायित्व हिंदू समाज पर ही है, भारत का दुनिया में सम्मान या अपमान हिंदुओं पर ही निर्भर है

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